Monday 5 September 2022

शिक्षक दिवस पर छात्रों ,नौजवानों के लिए डॉ अशोक गदिया की सीख


               
आज
का युग धर्म

डॉ. अशोक कुमार गदिया

चेयरमैन ,मेवाड़ विश्वविद्यालय  

महत्व की बात यह है कि हमारे समाज में आज आने वाली पीढ़ी को कैसे मार्गदर्शन की आवश्यकता है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कैसा समाज एवं राष्ट्र चाहते हैं? उनमें ऐसी कौन-सी विशेषताएँ होनी चाहिएं जिससे हम विश्व पटल पर सभ्य समाज एवं सुदृढ़ राष्ट्र के रूप में जाने जा सकें। जब यह बात ध्यान आती है तो स्वाभाविक रूप से  कुछ बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं मसलन व्यक्ति मानव मूल्यों का पालक एवं पोषक हो। व्यक्ति सामाजिक विषयों   पर संवेदनशील हो तथा सामाजिक असमानता, सार्वजनिक दोषों एवं कुरीतियों को  दूर करने के लिये प्रतिबद्ध हो। व्यक्ति राष्ट्रभक्त हो, अपनी संस्कृति, सभ्यता,  महापुरुषों एवं जीवन मूल्यों पर गर्व करता हो। हर परिस्थिति  में  उसकी पालना करता हो। व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से पढ़ा-लिखा, होशियार, सजग, स्वस्थ, मजबूत, आत्मविश्वासी एवं आत्मनिर्भर हो। व्यक्ति या तो अच्छी नौकरी करता हो या अच्छा व्यवसाय या व्यापार करने में सक्षम हो एवं अपनी विद्या में निपुण हो।

हमारी शिक्षा बहुआयामी हो, जो शिक्षा के बाद रोजगार, व्यापार एवं व्यवसाय के साथ जुड़ना चाहते हैं, उन्हें वैसा मौका मिले जो साहित्य, कला, संस्कृति, विज्ञान, खेल-कूद, योग, व्यायाम, अध्यात्म, राजनीति आदि में जाना चाहें, उनको  वैसा अवसर प्राप्त हो। जो अनुसंधान एवं उच्च शिक्षा की ओर जाना चाहें, उनको वह अवसर उपलब्ध हो। रोजगारपरक शिक्षा सबके लिए हो। यानी तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा सबके लिए उपलब्ध हो। कला, संस्कृति, संगीत, इतिहास, राजनीति विज्ञान, मेडिकल, खेल-कूद, पर्यावरण आदि विशिष्ट प्रतिभा वाले लोगों के लिये हों। सामाजिक व्यवस्था जैसे न्याय, सुरक्षा, व्यापार, व्यवसाय एवं रोजगार के समान अवसर, स्वच्छता, पर्यावरण एवं शुद्धता सुनिश्चित हो।  हम सब हृदय से सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को स्वीकार करें। उसको ईमानदारी से व्यवहार में  लाएं। भारत सरकार एवं सभी राज्य सरकारें विदेशी कर्ज़ से मुक्त हों। ऐसा संकल्प हर भारतीय का हो। सरकार का प्रथम दायित्व हो, आम जनता को न्याय एवं सुरक्षा निश्चित करना एवं द्वितीय दायित्व हो लोक कल्याण।

यदि हम उपरोक्त विषयों को ध्यान में रखकर आगे आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करेंगे तो हम वैसा ही समाज एवं राष्ट्र बनायेंगे, जैसा हम चाहते हैं। आज हम भारत देश पर निगाह डालें तो पायेंगे कि यह एक विशाल देश है, जहाँ 130 करोड़ लोग रहते हैं। इन 130 करोड़ लोगों में तकरीबन 70 करोड़ युवा हैं। यह शायद विश्व की सबसे अधिक युवा

आबादी का देश है। इस मायने में हमारा देश एक युवा देश है। हालांकि हमारी संस्कृति, सभ्यता एवं अस्तित्व विश्व में सबसे पुराना है। एक युवा देश होने के नाते हमारे देश में कुछ स्वाभाविक लक्षण होने चाहिएं-जैसे अत्यधिक शक्ति, जोश, स्फूर्ति एवं हर समय कुछ नया एवं विशिष्ट करने का जज्बा, नयी उमंग, खेलकूद, साहसिक कार्य, अध्ययन एवं अनुसंधान, व्यवसाय, रोजगार, कला-संस्कृति, देशभक्ति, समाजसेवा, नई तकनीक, फैशन, साज-सज्जा आदि। क्योंकि जहाँ युवा पीढ़ी होगी, वहाँ ये कार्य स्वाभाविक रूप से नित नूतन तरीकों से बढ़िया होंगे। होने भी चाहिएं। परन्तु जब वास्तविकता पर दृष्टिपात करेंगे तो पायेंगे कि हमारे यहाँ इन सबमें जिस अनुपात में प्रगति होनी चाहिए, उतनी नहीं हुई है। इन सब कार्यों में विश्वस्तरीय हमारी पूर्ण निपुणता, गुणवत्ता एवं संख्या बहुत कम है। हमारी युवा जनसंख्या के अनुपात में तो यह बिल्कुल नगण्य है।

इस पिछड़ेपन का मूल कारण क्या है? बहुत सोचने पर जो मुझे समझ आता है, वह यह कि हमारे नौजवानों को घर से लेकर विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय तक में तो उचित शिक्षा मिली, उचित प्रशिक्षण मिला और ही उचित सलाह एवं प्रोत्साहन मिला।

किसी भी राष्ट्र एवं समाज को यदि उन्नति के शिखर पर पहुँचना है, खुशहाल होना है तो उस देश का युवा जब तक आत्मविश्वास से भरपूर, आत्मनिर्भर, अपने अधिकारों एवं दायित्वों के प्रतिपूर्ण रूप से सजग, सामाजिक रूप से संवेदनशील, राष्ट्रीय रूप से देशभक्त, अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं महापुरुषों का आदर करने वाला, मानसिक एवं शारीरिक रूप से पूर्णतया विकसित और सुदृढ़ नहीं होगा, तब तक देश उन्नति के शिखर पर नहीं पहुँच सकता। वहाँ का समाज प्रगतिशील एवं सभ्य नहीं हो सकता।

अतः इस कालखण्ड में सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्य यदि कोई है तो वह है युवा पीढ़ी के बीच काम करना, उसको अच्छे से पढ़ाना-लिखाना, प्रशिक्षण देना, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विषयों की पूर्ण प्रमाणिक जानकारी देना और उनमें सामाजिक राष्ट्रीय चेतना जागृत करना। उनको इस देश की कला-संस्कृति, संस्कार एवं महापुरुषों के साथ जोड़ना और उनके प्रति गौरव का भाव पैदा करना। उनमें हर परिस्थिति में देश एवं समाज के हित में कुछ करते रहने का जज्बा पैदा करना।

समाज के पिछड़े एवं दबे हुए उपेक्षित तबके के प्रति दया या घृणा का भाव नहीं, अपनेपन का भाव जगाना और लगातार उनके विकास के लिये कुछ करते रहने का भाव पैदा करना। नौजवानों की अच्छी नौकरी लगवाना। जो अच्छी नौकरी नहीं कर सकते, उन्हें अच्छे उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करना, हर नवयुवक को अपने व्यक्तित्व को निखारने का सुअवसर प्रदान करना, उसको एक जिम्मेदार नागरिक बनाना और अंततः उसको अपनी विद्या में एक कामयाब पेशेवर बनाकर सामाजिक जीवन में भेजना। यह है आज के समय का युग धर्म।

अब यह सवाल उठता है कि यह सब काम कहाँ होंगे, कब होंगे, कैसे होंगे? और उन्हें कौन करेगा? इन सब प्रश्नों के उत्तर देने से पहले मैं एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि नौजवान तैयार करने की प्रक्रिया लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। यह कोई एक दिन, एक सप्ताह या एक माह के प्रशिक्षण शिविर से पूरी नहीं होने वाली है। इस काम को सरकार तो बिल्कुल भी नहीं कर सकती है।

नौजवान तैयार करने का काम विद्यालयों, महाविद्यालयों  एवं विश्वविद्यालयों में दिन-प्रतिदिन होगा। इसको करेंगे प्रतिदिन पढ़ाने वाले अध्यापक, प्राध्यापक एवं प्रबन्धन के वरिष्ठजन और यह होगा एक विशिष्ट शैक्षणिक पद्धति का गठन कर उसको उपयोग में लाने से, वह विशिष्ट पद्धति है जिसमें अध्यापक का कार्य हो। पढ़ना, पढ़ाना एवं सिखाना, व्यावहारिक प्रशिक्षण देना ,रोजगार दिलाना, मित्र या मार्गदर्शक बनना

विद्यार्थियों के लिये एक मित्र, मार्गदर्शक एवं अच्छे गुरु का काम करना। ये सभी कार्य अध्यापक की सेवाकार्य का अनिवार्य हिस्सा हो, उसे इस काम को करना ही करना है और दिन-प्रतिदिन करना है। इसके साथ ही शैक्षणिक दिनचर्या ऐसी होनी चाहिये कि पढ़ने, पढ़ाने एवं काउंसिलिंग के अतिरिक्त ऐसी गतिविधियाँ, साँस्कृतिक कार्यक्रम लगातार करते जाना, जिससे विद्यार्थी एवं अध्यापकों का सर्वांगीण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, साँस्कृतिक एवं संवेगात्मक बौद्धिक विकास हो, जिससे उनमें राष्ट्रभक्ति, समाज के प्रति संवेदनशीलता, राष्ट्र निर्माण एवं सामाजिक बुराइयों को खत्म करने का भाव हर समय जागृत हो। इस कार्य को करने के लिये हम  समय-समय पर विभिन्न महापुरुषों की जयन्तियाँ बहुत ही प्रभावशाली तरीके से मनाना। ताकि उस कार्यक्रम में सम्मिलित लोग पूर्णरूप से प्रभावित हों और उनमें ऐसा भाव पैदा हो, जिससे लगे कि हमारी रगों में उन महापुरुषों का रक्त प्रवाहित हो रहा है एवं हम इनकी संतान हैं। हमें वे सभी काम करने चाहिए जो इन महापुरुषों ने अपने समय और परिस्थितियों को देखते हुए किये। प्राथमिकता के स्तर पर हमें कौन से युवाओं को पढ़ाना चाहिये? किस पर सबसे पहले काम शुरू होना चाहिए? तो वह है गाँवों से ताल्लुक रखने वाले गरीब एवं उपेक्षित वर्ग के नौजवान एवं सुदूर इलाकों में रहने वाले युवा। कहने का मतलब है ऐसे युवाओं को प्राथमिकता से शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना जिन तक कोई नहीं पहुँचता हो। यह होना चाहिए मूलमंत्र। यदि हम पूरी ईमानदारी एवं पूरी प्रमाणिकता से इस मिशन पर काम करेंगे तो समाज एवं राष्ट्र को ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में युवा देंगे।

वे ऐसे युवा होंगे जो आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, निपुणता, अनुशासन, ज़िम्मेदारी, सामाजिक संवेदनशीलता, राष्ट्रभक्ति के भाव से भरे होंगे। जहाँ जायेंगे, सफल होंगे और अपनी छाप छोड़ेंगे। उससे बनेगा एक संवेदनशील एवं संस्कारी घर, परिवार एवं समाज और उससे बनेगा सुदृढ़ राष्ट्र। पर इस महान कार्य को करने के लिये हमें बनाने होंगे अच्छे अध्यापक। इसके लिये उनका ठीक से चयन करना होगा। उन्हें ठीक से प्रशिक्षित करना होगा। उन्हें ठीक से प्रोत्साहित करना होगा। जब तक अच्छा अध्यापक नहीं होगा, बच्चा अच्छा नहीं हो सकता, यह जान लीजिये। अच्छा अध्यापक होगा, प्रोत्साहन, प्रशिक्षण एवं उचित मानदेय से। तो आइये समाज एवं राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग दीजिए और लग जाइये अच्छा युवा एवं अच्छा अध्यापक बनाने में।

 

 (लेखक  मेवाड़ विश्वविद्यालय के चेयरमैन हैं)

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