Friday 23 October 2015

देश की व्यवस्था पर गहरा व्यंग करती डॉ अशोक कुमार गदिया की शानदार कविता

देश की व्यवस्था पर गहरा व्यंग करती और एक सकारात्मक संदेश देती ,मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ अशोक कुमार गदिया की मार्मिक कविता

मुझे पता है----------

मैं चला था
कुछ नया और नूतन करने
मैं चला था
कुछ अच्छा एवं शुभ करने
मैं चला था
नौजवानों को रोज़गारपरक शिक्षा देने
मैं चला था
उद्योग एवं शिक्षा की दूरियों को पाटने
मेरा उद्देश्य
सीधासच्चापावन  पवित्र था,
मैने यह नूतन और नवीन कार्य
छिपकर नहीं किया था,
इन ज़माने के,
सभी आकाओं को बताकर किया था,
मुझे लगा,
वे मेरी प्रशंसा करेंगे,
मुझे प्रोत्साहित करेंगे,
पर
वे मौन रहे,
मुझे लगा,
ये आका अभी प्रशंसा नहीं कर रहे हैं,
शायद काम देखकर करेंगे,
चूंकि ये मौन हैं,
मना नहीं कर रहे हैं तो,
यह काम इनकी समझ में ग़लत नहीं है,
मुझे नहीं पता था,
कि ये तो,
मुझे ही जाल में फंसा रहे हैं
वक़्त आने पर मुझे गुनाहगार ठहरा देंगे,
मुझे नहीं पता था,
कि कोई नया एवं नूतन
रोज़गारपरक शिक्षण  प्रशिक्षण,
एक निजी संस्थान नहीं कर सकता,
मुझे नहीं पता था कि,
इस काम का ठेका तो,
सरकार ने ही ले रखा है,
मुझे नहीं पता था कि,
यदि कोई छोटा निजी संस्थान,
इसे कर देगा तो अपराधी हो जाएगा,
सारे नियम-क़ानून लगाकर,
उसे ख़त्म करने का उपक्रम होगा,
वाह आकाओं वाह!
कितना फर्क है,
आपकी कथनी और करनी में,
मुझे नहीं पता था,
कि इस देश में नियम-क़ानून-
इंसान के भले के लिए होते हैं,
या इंसान-
नियम-क़ानून के भले के लिए होते हैं,
मुझे नहीं पता था
कि पायजामा टांगों को ढकने के लिए होता है,
या टांगें पायजामे के लिए होती हैं,
मुझे नहीं पता था,
कि इस देश में ईमानदारी एवं अच्छे लोगों को,
अपमानित कर गुनाहगार ठहरा दिया जाता है।
मुझे नहीं पता था
कि हमारे आका कान के इतने कच्चे होते हैं,
कि अख़बार की,
एक ख़बर पर अपने विचार
बना लेते हैं,
बिना सच्चाई और उद्देश्यों को जाने,
ग़लती मेरी ही थी,
कि मैं इस झूठ ,आडम्बर
फ़रेब की दोगली दुनिया में
ईमानदारी से देश बनाने चला,
मेरा भगवान और मेरे आदर्श,
मुझे अभी भी कह रहे हैं,
कि निराश होने की ज़रूरत नहीं,
अभी इस देश में न्यायालय एवं भगवान बचे हैं,
तुम्हारी मदद करेंगे,
अपना काम किये जाओ,
मैं चला था नया और नूतन करने,
अभी भी चलता रहूंगा,
और सावधानी से चलूंगा,
 तो थकूंगा,  ही निराश होऊंगा।
मेरा लक्ष्य बड़ा है,
मुझे पता है,
कि इस देश का कल्याण तभी होगा,
जब यहां का युवा
रोज़गारपरक शिक्षा लेगा,
और
या तो अच्छा रोज़गार करेगा
या फिर उद्यमी बनेगा।

 लेखक
 डॉ अशोक कुमार गदिया                
 कुलाधिपति
 मेवाड़ विश्वविद्यालय


2 comments:

  1. आप चले थे,
    एक उम्मीद लेकर जो की आज एक सोच बन गयी है
    आप जीतोगे हमे भरोसा है
    क्युंकी खुदा की बरकत में देर है अंधेर नही है |

    ReplyDelete
  2. आप चले थे,
    एक उम्मीद लेकर जो की आज एक सोच बन गयी है
    आप जीतोगे हमे भरोसा है
    क्युंकी खुदा की बरकत में देर है अंधेर नही है |

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