Friday 25 September 2015

देश की वर्तमान व्यवस्था पर डॉ अशोक कुमार गदिया की मार्मिक कविता

देश की वर्तमान व्यवस्था पर मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ अशोक कुमार गदिया की मार्मिक कविता
ओ नमक के पहरेदारों !!

ओ नमक के पहरेदारों
देखों तुम्हारा समुद्र लुट रहा है ,
ओ नफ़रत की खेती करने वालों !
देखों तुम्हारा चमन सूख रहा है
ओ तंग दिलों के पहरेदारों !
तुम्हारी छोटी समझ से ,
देश बर्बाद हो रहा है
ओ तंग दिल और छोटी समझ के लोगों !
इस मन से तो परिवार भी नहीं चलता ,
तुम देश चलानें की बात कर रहें हो ,
ओ नमक के पहरेदारों !
देखों तुम्हारा समुद्र लुट रहा है ||
माना कि नाइंसाफी ,अत्याचार और
दुष्कलंक बहुत झेला है हमनें ,
पर, क्या इसके लिए
सिर्फ आततायी ही जिम्मेदार है ?
या कुछ हद तक हम भी ज़िम्मेदार है ?
आवश्यकता है ,
अपने आपको ताकतवर बनाने की ,
कहाँ गई ,
हमारी आत्मसात की विलक्षण प्रतिभा ,
जो हमसे मिला हमारा होकर रह गया ,
जिसने हमारे साथ खाया
वह अपना खाना ही भूल गया ,
हमसे मिला तो ऐसे मिला
जैसे दूध में मिसरी ,
बस उस क्षमता को ,
पुनर्जीवित करने की जरुरत है |
ओ नमक के पहरेदारों !
देखों तुम्हारा समुद्र लुट रहा है ||
ज़माना बदल रहा है ,
सफ़लता के मापदंड बदल रहें है ,
इस वक्त श्रेष्ठता की पूजा हो रही है ,
आओ आपसी मतभेद मिटाकर
जाति –पांति से ऊपर उठकर ,
सबको साथ लेते हुए
श्रेष्ठता की ओर आगे बढ़ें ,
ओ नमक के पहरेदारों !
देखों तुम्हारा समुद्र लुट रहा है ||
लेखक
डॉ अशोक कुमार गदिया
कुलाधिपति, मेवाड़ विश्वविद्यालय,चित्तौड़गढ़ (राजस्थान )








1 comment:

  1. One of the best post.I appreciate gadiya sir emotion, a true feeling.

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