Friday 7 September 2018

स्वाधीनता दिवस पर चेयरमैन सर का विशेष संबोधन


स्वाधीनता दिवस पर मेवाड़ विश्वविद्यालय के चेयरमैन डॉ अशोक कुमार गदिया का प्रेरणादायक संबोधन  
आज हम भारत देश पर निगाह डाले तो पायेंगे कि यह एक विशाल देश है। जहाँ 130 करोड़ लोग रहते हैं। इन 130 करोड़ लोगों में 65-70 करोड़ लोग युवा है और यह विश्व की सबसे अधिक युवा आबादी का देश है। इस मायने में हमारा देश एक युवा देश है। हालांकि हमारी संस्कृति, सभ्यता एवं अस्तित्व शायद विश्व में सबसे पुराना है।
एक युवा देश होने के नाते हमारे देश में कुछ स्वभाविक लक्षण होने चाहिए, जैसे कि अत्यधिक शक्ति, जोश , स्फूर्ति एवं हर समय कुछ नया एवं विशिष्ठ करने का ज़ज्बा, नयी उमंगे, खेल-कूद, साहसिक काम, अध्ययन एवं अनुसंधान, व्यापार, व्यवसाय, रोजगार, कला-संस्कृति, देश -भक्ति, समाज सेवा, नई तकनीक, फैशन साज-सज्जा आदि में अव्वल हो। क्योंकि जहाँ युवा पीढ़ी होगी वहाँ ये कार्य स्वभाविक रूप से नित नूतन तरीकों से एक से बढ़कर एक होंगे, होने भी चाहिए। जब वास्तविकता पर दृष्टिपात करेंगे तो पायेंगे कि हमारे यहाँ इन सब चीजों में जिस अनुपात में प्रगति होनी चाहिए उतनी नहीं हुई है। इन सब कामों में विश्व स्तर की पूर्ण निपुणता, गुणवत्ता एवं संख्या दोनों में बहुत कम है और हमारी युवा जनसंख्या के अनुपात में तो ये नगण्य है।
इस पिछड़ेपन का मूल कारण क्या है? बहुत सोचने पर जो मुझे समझ आता है, वह यह कि हमारे नौजवानों को घर से लेकर विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय तक न तो उचित शिक्षा मिली न उचित प्रशिक्षण मिला और न उचित सलाह एवं प्रोत्साहन मिला।
कहने का मतलब यह है कि युवाओं का स्वाभाविक विकास नहीं हुआ। उसका विकास व्याप्त रीति-रिवाज, परिस्थितियां, देखा-देखी, दुष्प्रचार, गलतफहमी, गलत सरकारी नीतियाँ, राजनैतिक दलों की साजिश , असामाजिक तत्वों के प्रलोभन से हुआ। उसका नतीजा है हर तरफ अफरा-तफरी, आतंक एवं हिंसा, असंतोष, भ्रष्टाचार, शोषण, जातिवाद, बेरोजगारी, सरकारी नौकरी का लालच एवं सरकार पर पूर्ण निर्भरता, काम चोरी, हरामखोरी, अनुशासनहीनता, चोरी, डकैती, लूट, झूठ, हेरा-फेरी, मिलावट एवं कम तौल, हत्या, बलात्कार, आत्महत्या, बेवजह तनाव, नशाखोरी, सामाजिक असमानता आदि से ग्रसित है हमारी युवा पीढ़ी, और यह मानसिकता दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है।
किसी भी राष्ट्र एवं समाज को यदि उन्नति के शिखर पर पहुँचना है, खुशहाल होना है तो उस देश  का युवा जब तक आत्मविश्वास  से भरपूर, आत्मनिर्भर, अपने अधिकारों एवं दायित्वों के प्रतिपूर्ण रूप से सजग, सामाजिक रूप से संवेदनशील राष्ट्रीय रूप से देशभक्त अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं महापुरुषों का आदर करने वाला मानसिक एवं शारीरिक रूप से पूर्णतया विकसित एवं सुदृढ़ नहीं होगा, तब तक देश  उन्नति के शिखर पर नहीं पहुँच सकता। वहाँ का समाज प्रगतिशील  एवं सभ्य नहीं हो सकता। अतः इस कालखण्ड में सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्य यदि कोई है तो वह है युवा पीढ़ी के बीच काम करना, उनको अच्छे से पढ़ाना, लिखाना, प्रशिक्षण करवाना, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विषयों की पूर्ण प्रमाणिक जानकारी देना और उनमें सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना जागृत करना। उनको इस देश  की कला संस्कृति, संस्कार एवं महापुरुषों के साथ जोड़ना और उनके प्रति गौरव का भाव पैदा करना। उनमें हर परिस्थिति में देश  एवं समाज के हित में कुछ करते रहने का जज्बा पैदा करना। समाज के पिछड़े एवं दबे हुए उपेक्षित तबके के प्रति दया का भाव नहीं अपनेपन का भाव जगाना और लगातार उनके विकास के लिये कुछ करते रहने का भाव पैदा करना। नौजवानों की अच्छी नौकरी लगवाना, जो अच्छी नौकरी नहीं कर सकते उन्हें अच्छे उद्यमी बनने की ओर अग्रसित करना, हर नवयुवक को अपने व्यक्तित्व को निखारने का सुअवसर प्रदान करना और उसको एक जिम्मेदार नागरिक बनाना और अंततः उसको अपनी विद्या में एक कामयाब पेशेवर बनाकर सामाजिक जीवन में भेजना, यह है आज के समय का युग धर्म।
अब यह सवाल उठता है कि यह सब काम कहाँ होंगे, कब होंगे, और कौन करेगा और कैसे होंगे? इन सब प्रश्नों  के उत्तर देने से पहले मैं एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यह नौजवान तैयार करने की प्रक्रिया लगातार चलने वाली प्रक्रिया है यह कोई एक दिन का एक सप्ताह या एक माह के प्रशिक्षण शिविर से पूरी नहीं होने वाली है और इस काम को सरकार तो बिल्कुल भी नहीं कर सकती है। यह नौजवान तैयार करने का काम महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों में दिन-प्रति-दिन होगा। इसको करेंगे रोज पढ़ाने वाले प्राध्यापक एवं प्रबन्धन के वरिष्ठ जन और यह होगा एक विशिष्ट शैक्षणिक पद्धति का गठन कर, उसको उपयोग में लाने से , वह विशिष्ट पद्धति है जिसमें अध्यापक का कार्य हो। अच्छे से अच्छा पढ़ना एवं पढ़ाना इनमें निम्नलिखित काम दिन-प्रति-दिन करने होंगे-
पढ़ना-पढ़ाना, एवं सिखाना यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के साथ रोज करनी पड़ती है। इसके कई तरीके हैं जिसमें मुख्य रूप से सबसे पहले अध्यापक अपना विषय कक्षा में पढ़ाता है तथा 4-5 दिन लगातार पढ़ाकर अपना एक यूनिट पूरा करता है उसके बाद उसी यूनिट को पुनः पढ़ाने के लिये बच्चों से सहयोग लेता है। वह कुछ बच्चों से प्रजेन्टेश न करवाता है, कुछ बच्चों से एसाइमेन्ट लेता है, कुछ बच्चों से चार्ट बनवाता है, कुछ बच्चों से मॉडल बनवाता है और फिर यूनिट टेस्ट लेता है। इसके बाद जरूरत पड़ने पर उस यूनिट पर एक गेस्ट लेक्चर करवाता है। इस तरह से सभी यूनिटों को पढ़ाकर उस विषय की टीचिंग लर्निंग पूरी करवाता है। यह पढ़ने, पढ़ाने एवं सिखाने का सर्वोत्तम तरीका है। फिर दूसरा महत्वपूर्ण काम  है प्रैक्टिकल ट्रेनिंग, उसमें हर बच्चे को अपने कोर्स के दौरान भारत की सबसे अच्छी या विदेश  की सबसे अच्छी ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट में ट्रैनिंग करने के लिये भेजना और वहाँ पर बच्चों के मुख्य विषय से संबंधित कोई एक लेटेस्ट मॉडल करवाना और वहाँ से एक सर्टिफिकेट लेना रहता है। उसके बाद अन्तिम सेमेस्टर में किसी इन्डस्ट्री या प्रोफेशनल फर्म में इंटर्नशिप के लिये जाना होता है। इस तरह उसकी पढ़ाई पूरी करायी जाये। इस पूरे प्रोसेस में एक-एक बच्चे का ध्यान रखा जाए और हर बच्चा अपने आप में एक विषिष्ट प्रतिभा के रूप में विकसित कर सामाजिक जीवन में भेजा जाये।
अन्त में कई तरह की कम्पनियाँ बुलाकर उसकी मनमर्जी नौकरी दिलवाई जाये। यदि वह नौकरी में रुचि नहीं रखता तो उसे अपनी पारिवारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसे किसी व्यापार, व्यवसाय या उद्योग में लगवाने का परामर्श  तथा यदि उसे किसी लोन की जरूरत है तो उसको लोन दिलवाने की व्यवस्था करना तथा बच्चे का पूरा रिकार्ड अपने पास रखना जो कि आपकी Achieves  में सुनिश्चित हो जिससे कि हमारा उससे जीवन-भर का सम्बन्ध स्थापित हो जाये।
दूसरा विद्यार्थियों के लिये एक मित्र, मार्गदर्शक  एवं गुरु का काम करना और यह दोनों काम अध्यापक की सेवा कार्य का अनिवार्य हिस्सा हो कि उसे इस काम को करना ही करना है।
“A teacher has to be mentor or counselor, counseling must be integral part of his duly as teacher”
इसके साथ-साथ ही शैक्षणिक दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए कि पढ़ने पढ़ाने एवं काउंसिलिंग के अतिरिक्त ऐसी गतिविधियां एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम लगातार करते जाना जिससे विद्यार्थी एवं अध्यापकों का सर्वांगीण विकास हो जिससे उनमें राष्ट्र भक्ति, समाज के प्रति संवेदनशीलता , राष्ट्र निर्माण एवं सामाजिक बुराईयों को खत्म करने का भाव हर समय जागृति हो। इस कार्य को करने के लिये हम निम्नलिखित कार्यक्रम कर सकते हैं।
1.    समय समय पर विभिन्न महापुरुषों की जयंती बहुत ही प्रभावशाली तरीके से मनाना जिससे की उस कार्यक्रम में सम्मिलित लोग पूर्ण रूप से प्रभावित हो और उनसे ऐसा भाव पैदा हो कि हमारे रंगों में इन महापुरुषों का रक्त प्रवाहित हो रहा हो और हम इनकी संतान हैं तथा हमें वह सभी काम करने चाहिये जो इन महापुरुषों ने किये, समय को परिस्थितियों को देखते हुए।
2.    सम सामाजिक विषयों पर परिचर्चा संबंधित विषय के विषेषज्ञों को बुलाकर।
3.    किसी सामाजिक विषय पर संगोष्ठी एवं सेमिनार।
4.    सामाजिक एवं संवेदनशील  विषयों पर नाटक का मंचन।
5.    प्रेरणादायक, करुणापूर्ण शिक्षाप्रद चलचित्र दिखा कर संस्कार देना।
6.    समाज सेवा के लिये नवयुवकों को समाज में ले जाकर सामाजिक काम करना।
7.    विभिन्न बीमारियों के निवारण,उपचार एवं रोकथाम के लिये स्वास्थ्य शिविर लगाना।
8.    सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं व्यवसायिक सोच रखने वाले पेशेवर व्यक्तित्व को बुलाकर व्याख्यान एवं प्रशिक्षण  शिविर लगवाना।
9.    सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे गीत संगीत, नाटक, समूह एवं एकल नृत्य, रंगोली, पोस्टर, वाद-विवाद, निबन्ध, ग्रुप डिस्कशन, रोल प्ले, आदि आदि कार्यक्रम लगातार करते रहना।
10.   खेल-कूद, व्यायाम, भाग-दौड़ आदि कार्यक्रम।
11.   एनसीसी या एनएसएस या स्काउट संस्था को आमंत्रित कर उनके कार्यक्रम करवाना।
इन सब कार्यक्रमों में युवा अपनी रुचि के अनुसार प्रतिभागी बने, यह सुनिश्चित  करें कि हर युवा एक या दो गतिविधियों में जरूर प्रतिभागी बने जिससे उसका सर्वांगीण विकास सुनिश्चित होगा। प्राथमिकता के स्तर पर हमें कौन से युवाओं को उठाना चाहिये जिस पर सबसे पहले काम शुरू होना चाहिये तो वह है गाँवों से ताल्लुक रखने वाले गरीब एवं उपेक्षित वर्ग के नौजवान सुदूर इलाकों में रहने वाले युवा कहने का मतलब है ऐसे युवाओं को शिक्षित एवं प्रगतिशील करना जिन तक कोई नहीं पहुँचता हो।
‘Reaching to un reached’ and Serving Poorest of the Poor Section of Society  यह होना चाहिये मूल मंत्र। यदि हम पूरी इमानदारी से पूरी प्रमाणिकता से इस मिशन पर काम करेंगे तो समाज एवं राष्ट्र को जिम्मेदार नागरिक के रूप में युवा देंगे। वे ऐसे युवा होंगे जोआत्मविश्वास , आत्म निर्भरता, निपुण, अनुशासन, जिम्मेदारी, सामाजिक संवेदनशीलता, राष्ट्रभक्ति के भाव से भरे होंगे। जहाँ जायेंगे सफल होंगे और अपनी छाप छोड़ेंगे। उससे बनेगा एक संवेदनशील  एवं संस्कारी घर-परिवार एवं समाज और उससे बनेगा सुदृढ़ राष्ट्र। पर इस महान कार्य को करने के लिये हमें बनाने होंगे अच्छे अध्यापक इसके लिये उनका ठीक से चयन करना होगा। उन्हें ठीक से प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें ठीक से प्रोत्साहित करना होगा। जब तक अच्छा अध्यापक नहीं होगा, बच्चा अच्छा नहीं हो सकता यह जान लिजिये। अच्छा अध्यापक होगा, प्रोत्साहन, आत्मनिर्भरता एवं उचित पुरस्कार से तो आइये समाज एवं राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग दीजिये और लग जाइये अच्छा युवा एवं अच्छा अध्यापक बनाने में।

जय भारत, जय हिन्द!

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