Sunday 29 March 2020

कभी सोचा न था कि..

दुनियाँ भर में फैले कोरोना संकट पर मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ अशोक कुमार गदिया की एक महत्वपूर्ण कविता


कभी सोचा न था कि
इस तरह घरों में क़ैद होकर रहना पड़ेगा।
कभी सोचा न था कि
विकास की अंधी दौड़ में
मानव प्रजाति
अपने ही विनाश का सामान
खुद ही बनाने लगेगी।
कभी सोचा न था कि
विश्व का विज्ञान, तकनीक, प्रौद्योगिकी,
प्रकृति की छोटी-सी मार के सामने घुटने टेक देगी।
कभी सोचा न था कि
विश्व के सभी बाज़ार, यातायात के साधन, देवालय
सभी एक साथ बंद हो जाएंगे।
कभी सोचा न था कि
चीन, अमेरिका, यूरोप के सभी देश मिलकर
कुछ कर नहीं पाएंगे।
उनके शीर्ष नेता बेबस, लाचार एवं मजबूर दिखाई देंगे।
कभी सोचा न था कि
प्रकृति, मानव की विकृति को
इतनी बड़ी सज़ा देगी कि
मानव प्रजाति का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ जाएगा।
कभी सोचा न था कि
आदमी को आदमी से दूर कर दिया जाएगा।
कभी सोचा न था कि
इंसान को इंसान से दूर रखने में ही
जीवन की कल्पना होगी।
कभी सोचा न था कि
मानवकृत विकास, वैभव, संसाधन, धन-दौलत
सभी बेमाने हो जाएंगे।
ज़िन्दगी बचाने के लाले पड़ जाएंगे।
कभी सोचा न था कि
जान है तो जहान हैकी कहावत
अपने जीते जी चरितार्थ होगी और
सारा विश्व इस बात को
गला फाड़-फाड़कर कहेगा।
कभी सोचा न था कि
विश्व के सभी लोगों को भारतीय दर्शन,
भारतीय शिष्टाचार एवं
भारतीय खान-पान अपनाना पड़ेगा और
इसी में सर्वकल्याण है, यह कहना पड़ेगा।
कभी सोचा न था कि
अहिंसा परमो धर्म, त्याग-तपस्या एवं
एकांतवास जीवन का फलसफा होगा।
अब सोचता हूँ कि
ईश्वर प्रकृति अपनी कृपा करे,
मानव की ग़लतियों को माफ करे।
इस जाति को बचाये एवं
हम सबको दहशत से उबारे।
हमें अपने घरों में इस अनचाही क़ैद से मुक्त करे।
लेखक
डॉ. अशोक कुमार गदिया
चेयरमैन, मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
चेयरमैन, विश्वविद्यालय

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