- ओउ्म ध्यान लगाने और एकाग्रता पाने की महत्वूपर्ण तकनीक है
- हमें साजिशन हमारी शिक्षा नीति से दूर किया गया- डॉ. गदिया
गवर्नमेंट पीजी कॉलेज नोएडा के प्रोफेसर डॉ. वाई.डी. शर्मा ने कहा कि योग में ओउ्म शब्द के उच्चारण पर विवाद खड़ा करना बेमानी है। चित्त की वृत्तियों को रोकने के लिए योग बना है और योग में वृत्तियों को दूर करने के लिए जिस ध्यान की आवश्यकता होती है, वह ओउ्म से ही संभव है। योग हमारे चित्त को शांति प्रदान कर एकाग्र करता है। ओउ्म किसी धर्म का पर्याय नहीं बल्कि हमारी अंतश्चेतना की महत्वूपर्ण तकनीक है। वसुंधरा सेक्टर 4सी स्थित मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के विवेकानंद सभागार में आयोजित मासिक विचार संगोष्ठी में उन्होंने ये विचार व्यक्त किये। ‘वेदों में विज्ञान’ विषय पर वह मेवाड़ परिवार के सदस्यों व विद्यार्थियों को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि 18वीं शताब्दी के बाद संस्कृत को केवल एक विशेष समुदाय ने भोजन पाने का जरिया बनाया। इसके बाद विदेशियों ने खासतौर पर जर्मनी ने इसे गोद लिया। आज संस्कृत पर शोधपरक जितने भी भाष्य हमें मिलते हैं, सब विदेशी हैं। हम अपनी ज्ञान सम्पदा को खोने लगे हैं। इसका फायदा विदेशियों ने उठाया। आपको जानकर हैरत होगी कि 16 देशों के 34 विश्वविद्यालयों में आज संस्कृत मुख्य विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। हमें हमारे ही मूल ज्ञान से साजिशन दूर कर दिया गया है। हम इसके सत्य को पहचानें, इसीलिए भारत सरकार ने शिक्षण संस्थानों में संस्कृत को अनिवार्य बनाने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि हमारी ही विद्याओं को चुराकर इन्हें हमपर थोपा जा रहा है। इसे जानना व पहचानना जरूरी है। उन्होंने अपने सम्बोधन के बाद लोगों के प्रश्नों के उत्त्र भी बड़ी सहजता से दिये।
मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि हिन्दुस्तान पर राज करने वालों ने साजिशन हमें हमारी शिक्षा नीति से दूर किया और अपनी शिक्षा नीति में ढाला। हमारे संस्कार, हमारे विचार, हमारी संस्कृति व सभ्यता को छिन्न-भिन्न किया। अगर इतिहास पर नजर दौड़ायें तो पाएंगे कि विदेशों में अब जो अन्वेषण हो रहे हैं, वे हम कब के कर चुके हैं। हर क्षेत्र में हम आगे रहे हैं। इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट आदि में हमारा कोई सानी नहीं है। जो बात विदेशी 100 पेजों में लिखकर स्पष्ट कर पाते हैं, वह हमारे संस्कृत के एक श्लोक में निहित है। उन्होंने कहा कि अपने मूल को पहचानना है तो संस्कृत से जुड़ना होगा। नीति श्लोक पढ़कर विद्यार्थी अपने आपको सबसे अलग और महत्वूपर्ण बना सकते हैं। इसलिए वे जागें और संस्कृत को रोजगार के अलावा शौक के तौर पर भी पढ़ें।
इससे पूर्व उन्होंने प्रोफेसर डॉ. शर्मा को संस्थान की ओर से शॉल व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मेवाड़ लॉ इंस्टीट्यूट के महानिदेशक भारत भूषण, मेवाड़ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल समेत मेवाड़ परिवार के सदस्य व विद्यार्थी मौजूद थे। संगोष्ठी का सफल संचालन प्रोफेसर आईएम पांडेय ने किया।
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