कुलाधिपति, मेवाड़ विश्वविद्यालय
जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक कई लोगों से वास्ता पड़ता है उनमें से
सर्वप्रथम अपने माँ-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, भाई-बहन, चाचा, ताऊ, मामा, मौसी, बुआ आदि जन्म के साथ ही आपके साथ जुड़ जाते हैं।
उनका प्रभाव अपने जीवन पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रहता है। उनका प्यार, दुलार, डाट एवं सीख
बचपन में अवश्य मिलती है। पर यह कोई आवश्यक नहीं की आप उनके बताये रास्ते पर ही
चलते रहे और आगे बढ़ें।
अपने जीवन के निर्माण में और भी कई कारक होते हैं जैसे आपके विद्यालय एवं
महाविद्यालय के मित्र और अध्यापक , वहाँ की पढ़ाई, ट्रेनिंग कार्यक्रम एवं अध्यापकों का मार्गदर्शन
,इन सब कारको से भी प्रभावित एवं उत्प्रेरित होकर आप अपने व्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं। स्वभाविक रूप से उपरोक्त सभी कारको का जिनकी वजह से आपके व्यक्तित्व का
निर्माण हुआ उनकी आपके प्रति कुछ अपेक्षाएँ होती हैं, कुछ अरमान होते हैं जो आपको
ध्यान रखने होते हैं। एक सीधी सच्ची बात है कि जिस किसी ने यदि आपके लिए कुछ भी
समय लगाया है और उसका पारिश्रमिक उसे आपसे सीधा नहीं मिला तो समझो उसे आपसे कुछ
अपेक्षा जरूर हो गयी है वह प्रकट हुई या नहीं यह अलग बात है।एक ऐसा समय आयेगा जब
आपको उसकी कीमत किसी न किसी रूप में चुकानी होगी। यह पक्की बात है और यथार्थ है।
अब और आगे बढ़ते हैं जब हम आत्म निर्भर हो जाते हैं तो हमारे जीवन में एक जीवन
साथी प्रविष्ट होता है या होती है। उनकी सुख-सुविधा, सुरक्षा, भरण-पोषण एवं हर तरह की चिन्ता आपको करनी पड़ती
है तथा उस सम्बन्ध से पैदा हुए बच्चे एवं रिश्तेदारी भी निभानी हाती है। उनकी अपनी अपेक्षाएं होती है
जो कि बड़ी प्रबल होती है तथा जिसके पूरा होने में थोड़ी भी कसर रह जाय तो उसके
विपरीत परिणाम तुरन्त नजर आते हैं।
अपनें कार्यस्थल पर अपने कार्य को सफलता पूर्वक करने के लिए भी आपको अपने
सहयोगियों या वरिष्ठों की मदद लेनी पड़ती है. उनकी भी आपसे
कुछ अपेक्षाएं होती है, उन्हें भी समय-समय पर पूरा करना होता है वरना
उसके दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं।
इसके अलावा व्यक्ति आखिर इन्सान है उसकी अपनी भी कोई रुचि, विचार एवं भावना
होती है जिसके लिये उसे समय लगाकर ऊर्जा अथवा संतुष्टि होती है। कुछ समय वह उन
कामों में भी लगाना चाहता है। जब इन कारकों की अपेक्षाओं में टकराव होता है और
थोड़ी असंतुलन की स्थिति बनती है तो उसका असर दिल एवं दिमाग पर पड़ता है उसका परिणाम
स्वास्थ्य पर पड़ता है। यही सब आज के युग में सबसे अधिक हो रहा है। जो बड़ी चिन्ता
का विषय है। मेरी समझ में कई बीमारियों की वजह यह मानसिक असन्तुलन एवं अवसाद है
उससे उभरने के लिए उपाय खोजते हैं:-
1. कम से कम अपेक्षा रखना सबसे
2. कम से कम मदद लेना सबसे
3. कम से कम अपेक्षा जगाना औरों की अपने लिये
4. अपने विचार, व्यवहार, दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन, पहनावा आदि पर पक्का रहना और दूसरों को देखकर कम से कम प्रभावित होना और उसे
बदलना या बदलने की कोशिश नहीं करना।
5. कम से कम मित्र बनाना जिन्हें बनाना उन्हें जिन्दगी भर निभाना।
6. झूठ नहीं बोलना, मिथ्या वार्तालाप नहीं करना एवं मृदु बोलना पर
साफ बोलना।
7. वही काम हाथ में लेना जिसे हम पूरा कर सके। ज्यादा बड़ा बनने की कोशिश नहीं
करना।
8. चुप रहना, जितना जरूरी हो उतना ही बोलना औरों के काम में हस्तक्षेप नहीं करना।
9. अधिक श्रेय लेने की चेष्ठा न करना।
10. किसी को नीचा दिखाकर अपनी श्रेष्ठता साबित करने का प्रयास न करना। तुलना करने
का अवसर दूसरों को देना।
11. भलाई, सहायता एवं
सहयोग जीवन का अभिन्न अंग बनाने पर कोई अपेक्षा नहीं, कोई भेदभाव
नहीं।
12. टपनी आवश्कताएं जितनी सीमित कर सके करें।
13. कोई किसी तरह का अहंकार न पाले।
14. कम से कम क्रोध में आये।
15. अनावश्यक विवाद एवं बहस में न पड़े। किसी को बहस से जितने के बजाये दिल से
जीतने का प्रयास करें।
16. अपनों से कभी विवाद न करें बल्कि हर समय विवाद टालने का प्रयास करें।
17. आपस में प्रेम से रहें कोई भी दुर्भावना मन में न रखें।
18. बनावटी प्यार, व्यवहार, पहनावा सबसे गलत है, इससे हमेशा बचना
चाहिये।
19. अपनी व्यक्तिगत आवश्कताओं के लिये कम से कम आर्थिक सहयोग या उधार लें, यदि बिल्कुल न
ले तो अच्छा है।
20. खान-पान पर नियंत्रण रखें, जीने के लिये खाना है ,खाने के लिये नहीं जीना
है।
21. व्यसनों से जितना दूर रहे उतना अच्छा है।
22. अति हर चीज की बुरी है। अतः सामंजस्य एवं सोहार्दपूर्ण जीवन सबके साथ मिल-जुलकर
जियें ।
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