Tuesday, 1 September 2015

समरसता के लिए पुरातन व्यवस्था लागू करना जरूरी- डॉ. बजाज

मेवाड़ में राज्य व्यवस्था की भारतीय अवधारणा विषय पर विचार संगोष्ठी आयोजित
समरसता के लिए देश में पुरातन व्यवस्था लागू करना जरूरी- डॉ. बजाज
- राम बहादुर राय ने दिया पुराने जीवन मूल्य अपनाने पर जोर,
- वसुधैव कुटुम्बकम का भाव जगाना होगा- डॉ. गदिया
वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के विवेकानंद सभागर में आयोजित मासिक विचार संगोष्ठी में समाजनीति समीक्षण केन्द्र के निदेशक डॉ. जे.के.बजाज ने भारत में लागू राज्य व्यवस्था की भारतीय अवधारणा को अभूतपूर्व व समरसता, संप्रभुता व सबको एक समान रखने वाली बताया। उन्होंने बताया कि दो सौ साल पहले हमारा भारत कभी दरिद्र नहीं था। 
’राज्य व्यवस्था में भारतीय अवधारणा’ विषय पर आयोजित विचार संगोष्ठी में उन्होंने दक्षिण भारत के गांवों की अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक संसाधन, जातिगत आंकड़े, रोजगार के साधनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पहले राजा जब किसी राज्य की स्थापना करते थे तो पानी, ऊर्जा के स्त्रोत, रोजगार के संसाधन, जातिगत गणना के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए समुचित व्यवस्था करते थे। कितने भूभाग में कृषि होगी। किस वस्तु का उत्पादन कितना होगा और बाद में किस प्रकार से उसका वितरण होगा, यह सुनिश्चित किया जाता था। इस प्रकार से कोई भी राज्य कभी दरिद्र नहीं होता था। कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहता था। आज भी भारत में ऐसी ही पुरातन और सनातन व्यवस्था की आवश्यकता है। इसी को अपनाकर हमारे देश में स्मार्ट सिटी की परिकल्पना को पूरा किया जा सकता है। इससे खुशहाली आएगी। 
प्रख्यात पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा किपुराने जीवन मूल्यों को अपनाना होगा। जिस संथारा परम्परा को राजस्थान हाईकोर्ट ने आईपीसी 306 व 309 के तहत संज्ञेय अपराध माना है, वह उचित नहीं है। हमारे देश में समाधि परम्परा संथारा का ही रूप रही है। अगर राजस्थान हाईकोर्ट बिहार के गाजीपुर में भी लागू हो जाये तो विवेकानंद व औघारी बाबा तक अपराधी बन जाएंगे। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि हम कभी दरिद्र नहीं थे। हमारा संगीत, कला, विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र सबकुछ समृद्ध था। हमने एक हजार मुगलों, अंग्रेजों आदि का अतिक्रमण सहा फिर भी हम सर्वश्रेष्ठ रहे। यह बात अलग है कि अंग्रेज व मुगल जो चाहते थे, वह कर गये। खुद को सर्वश्रेष्ठ बता गये और हमें दीन-हीन। आज भी हम अपने आपको दीन-हीन ही माने बैठे हैं। वसुधैव कुटुम्बकम का भाव आज फिर सबमें जगाने की जरूरत है। तभी हम खुशहाल हो पाएंगे। विचार संगोष्ठी में मेवाड़ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल, करतार सिंह, अजय भाई, सुनील हापुड़िया समेत तमाम मेवाड़ परिवार मौजूद था। संचालन प्रोफेसर आईएम पांडेय ने किया। 

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